उत्तर प्रदेश को धर्म, कर्म, अध्यात्म, संस्कृति और समृद्ध इतिहास की धरती कहा जाता है। यहां के कण-कण में गौरवशाली इतिहास रचा-बसा है, जिसमें अतीत के कल अपने अंदर राज्य के संघर्ष, विरासत और परंपराओं को संभालकर बैठे हैं। ऐसे में भारत के 28 राज्यों में इस राज्य की अलग विशेषता है। यह विशेषता यहां मौजूद जिलों, शहरों और गांवों से बनती है।
इस कड़ी में हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक जिले के बिगुल को दुनियाभर में पहचान मिल गई है। भारत सरकार की संस्था Geographical Indication की ओर से राज्य के बिगुल को GI Tag मिला है, जिससे अब यह बिगुल दुनियाभर में अपनी मूल पहचान के साथ बजेगा। कौन-सा है यह जिला और क्या है इस बिगुल की कहानी, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
उत्तर प्रदेश का परिचय
उत्तर प्रदेश देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य है, जो कि 240,928 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसके साथ ही यह सबसे अधिक आबादी वाला राज्य भी है। साल 2011 में यहां की आबादी 19 करोड़ 98 लाख 12 हजार 341 दर्ज की गई थी। हालांकि, साल 2025 में यह आंकड़ा 24 करोड़ को पार कर गया है।
वर्तमान में यह सबसे अधिक जिले वाला राज्य भी है। यहां कुल 75 जिले हैं, जो कि 18 मंडलों में आते हैं। हालांकि, भविष्य में यहां 76वां जिला बनने का भी प्रस्ताव है, जिसे कल्याण सिंह नगर के नाम से जाना जाएगा। प्रदेश में कुल 351 तहसील, 17 नगर निगम, 75 नगर परिषद्, 28 विकास प्राधिकरण और 5 विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण हैं।
किस जिले के बिगुल को मिला है GI Tag
अब सवाल है हाल ही में यूपी के किस जिले के बिगुल को GI Tag मिला है। आपको बता दें कि मेरठ जिले के बिगुल को भारत सरकार की संस्था ने GI Tag टैग दिया है। बिगुल एक प्रकार का वाद्य यंत्र होता है, जिसका इस्तेमाल स्कूल, परेड, सेना और पुलिस में किया जाता है।
1830 में मेरठ में हुई थी शुरुआत
मेरठ में बिगुल बनने की शुरुआत 1830 में हुई थी। उस समय ब्रिटिश हुकूमत ने सेना के लिए बिगुल बनाने का काम मेरठ के कारीगरों को दिया था। इसके तहत यहां जली कोठी में आज भी बड़ी संख्या में बिगुल बनने का काम होता है। मेरठ में बिगुल, ट्रांपिट और ड्रम समेत करीब 10 प्रकार के संगीत वाद्य यंत्र बनाए जाते हैं। इन वाद्य यंत्रों की मांग देशभर समेत विदेशों में भी रहती है।
स्पोर्ट्स और कैंची के लिए भी जाना जाता है मेरठ
आपको बता दें कि मेरठ को स्पोर्ट्स और कैंची उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। यहां कैंची बनाने का काम मुगल काल से होता हुआ आ रहा है। यही वजह है कि मेरठ इन उत्पादों को लेकर अपनी अलग पहचान रखता है। वहीं, भविष्य में मेरठ की ओर से रेवड़ी और बैंडबाजा को जीआई टैग मिलने के लिए भी आवेदन किया गया है, जिसकी प्रक्रिया जारी है।
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