भारत के राष्ट्रीय गीत की बात करें, तो यह वंदे मातरम है। हाल ही में इस गीत ने पूरे 150 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संसद भवन में वंदे मातरम पर चर्चा की है। भारत का यह गीत सिर्फ गीत तक सीमित नहीं है, बल्कि इस गीत ने सालों तक स्वतंत्रता सेनानियों में ऊर्जा भरने का काम किया है। इस लेख में हम वंदे मातरम और इसके लेखक के इतिहास के बारे में जानेंगे।
किसने लिखा था वंदे मातरम
वंदे मातरम गीत को बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में लिखा गया था। उन्होंने यह गीत बांग्ला और संस्कृत में लिखा था, जो कि बाद में उनकी प्रसिद्ध कृति ‘आनंदमठ’ में जोड़ दिया गया था।
बंगाल के राष्ट्रगीत का मिला शीर्षक
वंदे मातरम में जिन प्रतीकों का उल्लेख किय गया है, वे सब बंगाल से संबंधित हैं। वहीं, इस गीत में बंगाल प्रांत की जनता का भी जिक्र किया गया है, जिसमें उस समय ओडिसा और बिहार भी शामिल थे। अरबिंदो घोष ने जब इसका अनुवाद किया, तो उन्होंने इसे बंगाल के राष्ट्रगीत का शीर्षक दिया।
1905 में बना देश की आवाज
साल 1905 में जब लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया, तो वंदे मातरम हर स्वतंत्रता सेनानी के मुख पर आ गया। अंग्रेजों का विरोध जताने के लिए वंदे मातरम गाया गया। इसकी धुन रबिंद्र नाथ टैगौर द्वारा तैयार की गई है। उस समय बांग्लादेश में हो रहे कांग्रेस के एक प्रांतीय अधिवेशन में वंदे मातरम गाने पर अंग्रेजों द्वारा हमला किया गया, जिसके बाद लोगों में गुस्सा फूटा और वंदे मातरम पूरे देश में गूंज उठा।
भगत सिंह से लेकर अशफाकुल्लाह खान ने गाया वंदे मातरम
वंदे मातरम एक नारे की तरह हर स्वतंत्रता सेनानी की आवाज बन चुका था। उस समय भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान द्वारा भी वंदे मातरम गया गया। धीरे-धीरे यह गीत बच्चे-बच्चे की जुबान पर भी पहुंच चुका था। वंदे मातरम का घोष बिल्कुल इंकलाब जिंदाबाद की तरह हो चुका था, जिससे स्वतंत्रता सेनानियों को नई ऊर्जा मिली और देश की आजादी की लड़ाई में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आज यह गीत भारत के तमाम शिक्षण संस्थानों में गाया जाता है। इनमें प्रमुख रूप से स्कूल शामिल हैं, जहां सुबह प्रार्थना सभा के दौरान स्कूली बच्चे वंदे मातरम गाते हैं।
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