सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर, 2025 (सोमवार) को केंद्र सरकार, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) और कई राज्यों से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें देश भर के स्कूली सिलेबस में ट्रांसजेंडर-समावेशी व्यापक यौन शिक्षा (सीएसई) को शामिल करने की मांग की गई थी।
न्यायधीश ने मांगा जवाब
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) भूषण आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दिल्ली की 16 वर्षीय छात्रा काव्या मुखर्जी साहा की ओर से दायर याचिका पर नोटिस जारी किया और प्रतिवादियों को छह सप्ताह के अंदर अपना जवाब देने का निर्देश दिया था।
आदेश पर नहीं हो रहा पालन
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के फैसले में स्कूली शिक्षा में सीएसई को शामिल करने का आदेश दिए जाने के बावजूद, इस निर्देश पर अभी तक पालन नहीं किया गया है। उन्होंने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत हाल ही में दिए गए एक जवाब का हवाला दिया जिसमें एनसीईआरटी ने स्वीकार किया था कि उसे अपने पाठ्यक्रम में ऐसी सामग्री शामिल किए जाने की "कोई जानकारी" नहीं है।
श्री शंकरनारायणन ने कहा, "इससे पता चलता है कि इस न्यायालय के आदेश अभी तक लागू नहीं हुए हैं।" उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यौन शिक्षा में लैंगिक संवेदनशीलता और ट्रांसजेंडर-समावेशी दृष्टिकोण को शामिल किया जाना चाहिए।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि एनसीईआरटी और अधिकांश राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदें (NCERT) ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019 की धारा 2(डी) और 13 के तहत स्पष्ट दायित्वों के बावजूद, लैंगिक पहचान, लैंगिक विविधता और लिंग तथा लिंग के बीच भेद पर परीक्षा योग्य मॉड्यूल शामिल करने में विफल रही हैं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक की पाठ्यपुस्तक समीक्षाओं में कथित तौर पर प्रणालीगत चूकें सामने आई हैं, जिनमें केरल केवल आंशिक अपवाद के रूप में सामने आया है।
बाल विवाह और यौन शिक्षा पर रोक
याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के दिसंबर 2024 के फैसले का भी हवाला दिया गया, जिसमें बाल विवाह को रोकने में यौन शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि बाल विवाह के बारे में सामाजिक धारणाओं को बदलने और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने में बाल शिक्षा (सीएसई) की महत्वपूर्ण भूमिका है।
Related Stories
गौरतलब है कि इस फैसले में रिपोर्टिंग की बाध्यता भी तय की गई थी, जिसके तहत शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को किसी छात्रा के स्कूल छोड़ने पर तुरंत अधिकारियों को सूचित करना आवश्यक था, ताकि समय पर हस्तक्षेप करके बाल विवाह या जबरन विवाह को रोका जा सके। यह फैसला एनजीओ सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन और कार्यकर्ता निर्मल गोराना द्वारा 2017 में दायर एक जनहित याचिका पर दिया गया था, जिसमें बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के खराब क्रियान्वयन की ओर इशारा किया गया था।
Comments
All Comments (0)
Join the conversation