दुनिया की मशहूर मोना लिसा की पेंटिंग किसने बनाई थी? जानें नाम  

Aug 28, 2025, 17:51 IST

मोना लिसा, जिसे 1503 में लियोनार्डो दा विंची ने बनाया था, इटली के नए दौर (Renaissance) की एक महान कलाकृति है। इसमें फ्लोरेंस के एक व्यापारी की पत्नी लिसा घेरार्डिनी को दिखाया गया है। यह पेंटिंग अपनी रहस्यमयी मुस्कान और सजीव लगने वाले विवरणों के लिए जानी जाती है। आज यह दुनिया की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक है।

मोना लिसा, लिसा घेरार्डिनी नाम की एक महिला की तस्वीर है। वह इटली के फ्लोरेंस शहर के एक अमीर रेशम व्यापारी, फ्रांसेस्को डेल जिओकोंडो की पत्नी थीं।
मोना लिसा, लिसा घेरार्डिनी नाम की एक महिला की तस्वीर है। वह इटली के फ्लोरेंस शहर के एक अमीर रेशम व्यापारी, फ्रांसेस्को डेल जिओकोंडो की पत्नी थीं।

अगर आप कभी लूव्र म्यूजियम गए हैं, तो आप वहां रखी दुनिया की सबसे मशहूर पेंटिंग, मोना लिसा, को देखकर चकित रह गए होंगे। इसकी रहस्यमयी मुस्कान और आकर्षक नजरों ने इसे इतिहास की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक बना दिया है।
लेकिन मन में यह सवाल आता है: मोना लिसा कौन हैं, और उन्हें किसने बनाया?

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मोना लिसा, लिसा घेरार्डिनी नाम की एक महिला की तस्वीर है। वह इटली के फ्लोरेंस शहर के एक अमीर रेशम व्यापारी, फ्रांसेस्को डेल जिओकोंडो की पत्नी थीं।

इस पेंटिंग को लियोनार्डो दा विंची ने बनाया था। वे एक प्रतिभाशाली कलाकार, वैज्ञानिक और आविष्कारक थे। उन्होंने इसे इटली के नए दौर (Renaissance) के दौरान बनाया था, जो महान रचनात्मकता और खोजों का समय था। उन्होंने 1503 में मोना लिसा पर काम करना शुरू किया।

यह पेंटिंग विंची की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक थी, जो अपनी रहस्यमयी मुस्कान के कारण मशहूर हुई। ऐसा लगता है कि यह कोई राज छिपा रही है। लोग अक्सर सोचते हैं कि वह क्या सोच रही हैं।

लियोनार्डो ने इस बेहतरीन कलाकृति को लकड़ी पर तेल वाले रंगों (oil paint) का इस्तेमाल करके बनाया। आज, मोना लिसा पेरिस के लूव्र म्यूजियम में है, जहां हर साल लाखों लोग उन्हें देखने आते हैं।

इस लेख में, हम उनके इतिहास के बारे में जानेंगे। हम यह भी जानेंगे कि वह इतनी मशहूर क्यों हैं और क्या चीज उन्हें इतना खास बनाती है।

मोना लिसा कौन थीं? मोना लिसा पेंटिंग के बारे में 7 खास बातें

मोना लिसा, फ्लोरेंस के एक अमीर रेशम व्यापारी फ्रांसेस्को डेल जिओकोंडो की पत्नी लिसा घेरार्डिनी की आधे शरीर की तस्वीर है।
लिसा का जन्म 15 जून, 1479 को फ्लोरेंस गणराज्य के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। वह अपनी सुंदरता और शालीनता के लिए जानी जाती थीं, जिसे लियोनार्डो दा विंची ने अपनी इस मशहूर पेंटिंग में कैद किया। मोना लिसा की रहस्यमयी मुस्कान ने इसे दुनिया की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक बना दिया है।

मोना लिसा पेंटिंग के बारे में 7 खास बातें

मोना लिसा, जिसे 16वीं सदी की शुरुआत में लियोनार्डो दा विंची ने बनाया था, इतिहास की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक है। यहां इस मशहूर पेंटिंग के बारे में सात दिलचस्प बातें बताई गई हैं:

पेंटिंग में कौन है: माना जाता है कि पेंटिंग में दिख रही महिला लिसा घेरार्डिनी हैं, जो फ्लोरेंस के व्यापारी फ्रांसेस्को डेल जिओकोंडो की पत्नी थीं। इसी वजह से इस पेंटिंग को इतालवी भाषा में 'ला जिओकोंडा' और फ्रांसीसी भाषा में 'ला जोकोंद' भी कहा जाता है।

नई तकनीकें: लियोनार्डो दा विंची ने 'स्फुमाटो' (sfumato) नाम की एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया था। इसमें रंगों को इस तरह मिलाया जाता है कि रोशनी और छाया के बीच कोई तेज लकीर न दिखे, बल्कि वे आपस में घुल जाएं। इसी तकनीक की वजह से पेंटिंग में एक अनोखी गहराई और कोमलता दिखती है।

रहस्यमयी मुस्कान: मोना लिसा की मुस्कान ने सदियों से देखने वालों को हैरान किया है। रिसर्च से पता चलता है कि देखने वाले के नजरिए के आधार पर उनकी मुस्कान अलग-अलग दिखती है। इससे एक तरह का दृष्टि भ्रम पैदा होता है, जो इसके रहस्य को और बढ़ाता है।

चोरी और प्रसिद्धि: इस पेंटिंग को दुनिया भर में प्रसिद्धि तब मिली जब 1911 में इसे लूव्र म्यूजियम से विन्सेंजो पेरुगिया नाम के व्यक्ति ने चुरा लिया था। उसका मानना था कि वह इसे इटली वापस ले जा रहा है। दो साल तक पेंटिंग के गायब रहने से लोगों की दिलचस्पी इसमें और बढ़ गई। जब यह वापस मिली, तो यह एक सांस्कृतिक घटना बन गई।

अमूल्य कीमत: हालांकि विशेषज्ञ मोना लिसा की कीमत 850 मिलियन डॉलर से ज्यादा आंकते हैं, लेकिन इसे अमूल्य माना जाता है। इसलिए इसका कभी बीमा नहीं कराया गया। यह फ्रांसीसी विरासत कानून के तहत सुरक्षित है, जो इसे एक सार्वजनिक संपत्ति बनाता है।

ऐतिहासिक मालिकाना हक: फ्रांस के राजा फ्रांसिस प्रथम ने 1530 में मोना लिसा को खरीदा था। इसके बाद यह शाही संग्रह में रही, जब तक कि इसे लूव्र में नहीं ले जाया गया। दिलचस्प बात यह है कि दा विंची को इस पेंटिंग के लिए कभी कोई पैसा नहीं मिला, क्योंकि इसे कभी भी उसके असली ग्राहक को नहीं सौंपा गया।

पेंटिंग की बनावट: यह पेंटिंग लगभग 30 इंच लंबी और 20 इंच चौड़ी है। इसे चिनार की लकड़ी (poplar wood) के पैनल पर बनाया गया है। एक खास बात यह है कि समय के साथ मरम्मत के कामों के कारण, मोना लिसा की भौहें नहीं दिखाई देतीं। इस वजह से उनके चित्रण को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं।

लियोनार्डो दा विंची: इस महान कलाकृति के पीछे का जीनियस

लियोनार्डो दा विंची वाकई में नए दौर (Renaissance) के एक जीनियस थे। उनका जन्म 1452 में इटली के विंची शहर में हुआ था। वे सिर्फ एक चित्रकार ही नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक, आविष्कारक और इंजीनियर भी थे। दुनिया के बारे में जानने की उनकी जिज्ञासा उनके हर काम में दिखती थी।

लियोनार्डो ने 1503 के आसपास मोना लिसा को बनाना शुरू किया। उन्होंने 'स्फुमाटो' जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल किया, जो रंगों को मिलाकर कोमल बदलाव लाती हैं, जिससे तस्वीर सजीव लगती है। उन्होंने छोटी-छोटी बातों पर बहुत ध्यान दिया—जैसे कि उनके कपड़ों की सिलवटें, उनके चेहरे पर पड़ने वाली रोशनी और उनकी रहस्यमयी मुस्कान।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि लियोनार्डो फ्लोरेंस छोड़ने के बाद भी सालों तक इस पेंटिंग को अपने साथ रखते थे। वे इसे लगातार बेहतर बनाते रहे, जो इसे एकदम सही बनाने के उनके जुनून को दिखाता है।

लियोनार्डो की अद्भुत कला और सोच ने मोना लिसा को सिर्फ एक पेंटिंग नहीं रहने दिया। यह एक ऐसी महान कलाकृति बन गई, जिसकी कला और रहस्य के लिए आज भी तारीफ होती है।

मोना लिसा आज इतनी मशहूर क्यों है?

सदियों तक मोना लिसा की प्रसिद्धि धीरे-धीरे बढ़ी। इसकी सजीवता और रहस्यमयी मुस्कान ने हमेशा कला प्रेमियों को आकर्षित किया है।

लेकिन 1911 में हुई एक चोरी ने इसे दुनिया भर में सनसनी बना दिया। लूव्र के एक कर्मचारी ने यह सोचकर पेंटिंग चुरा ली कि यह इटली की संपत्ति है। यह खबर पूरी दुनिया में फैल गई, जिससे मोना लिसा घर-घर में मशहूर हो गई।

तब से, उनकी प्रसिद्धि केवल बढ़ी ही है। लोग उनकी मुस्कान के बारे में सोचते हैं—क्या वह खुश हैं, दुखी हैं, या कुछ और? ऐसा लगता है कि उनकी आंखें आपका पीछा करती हैं, जो उनके आकर्षण को और बढ़ा देता है।

मोना लिसा को लियोनार्डो दा विंची की नई तकनीकों के लिए भी सराहा जाता है। रहस्यमयी बैकग्राउंड, उनके बैठने का अंदाज और रोशनी का हल्का-फुल्का खेल इसे अनोखा बनाते हैं। आज, यह कला और संस्कृति का प्रतीक है। हर साल लाखों लोग लूव्र में उनकी एक झलक पाने के लिए आते हैं।

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Bagesh Yadav
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