President of India: भारत में राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च नागरिक होता है। साथ ही, वह तीनों सेनाओं का प्रमुख कमांडर भी होता है। यदि देश के राष्ट्रपतियों की सूची उठाकर देखी जाए, तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाम देश के प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर देखने को मिलता। इससे पहले वह संविधान सभा के अध्यक्ष भी रहे थे। हालांकि, बाद में वह देश के पहले राष्ट्रपति बने और भारत रत्न से भी सम्मानित हुए। डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत ही सादगी और त्याग से रहने वाले इंसान भी थे। आज पूरा देश उनकी 141वीं जयंती मना रहा है। इस मौके पर हम उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं से आपको रूबरू करवाएंगे।
सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रहने का रिकॉर्ड
यह बात भी बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत में सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति के पद पर रहे हैं। वह 1950 में देश के पहले राष्ट्रपति बने थे और 1962 तक उन्होंने इस पद पर अपनी सेवाएं दीं।
राष्ट्रपति भवन से बनाकर रखी दूरी
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपने सादगीपूर्ण जीवन जीने के लिए जाने जाते थे। वह जब राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए वायसराय हाउस यानि भव्य राष्ट्रपति भवन में रहना ठीक नहीं समझा, बल्कि वह राष्ट्रपति भवन से दूर रहा करते थे। वहीं, राष्ट्रपति भवन में होने वाले आयोजनों में वह फिजूलखर्ची के बजाय सादगी पर ध्यान देते थे।
छोड़ दिया था वेतन का बड़ा हिस्सा
डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब देश के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा छोड़ दिया था। उन्होंने अपनी सचिव से कहा था कि वह राष्ट्रपति भवन में रहने वाले एक सामान्य कर्मचारी की तरह ही वेतन लेंगे। उस समय उनका वेतन 10 हजार रुपये था, जिसे उन्हें घटाकर 2500 रुपये कर दिया था। उनका कहना था, जब देश गरीबी से जूझ रहा है, तो किसी भी लोकसेवक को अपनी आवश्यताओं से अधिक धन नहीं लेना चाहिए। उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल यानि कि 12 वर्ष तक इस नियम का पालन किया था।
महात्मा गांधी के बड़े अनुयायी थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद
डॉ. राजेंद्र प्रसाद लॉ के प्रोफेसर रहे थे, लेकिन वह महात्मा गांधी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना वकालत का करियर छोड़ दिया। उन्होंने 1917 में गांधी जी की चंपारण यात्रा में सहयोग किया। इसके बाद वह देश के स्वतंत्रता संग्राम में लगे रहे। साल 1962 में सेवामुक्त होने के बाद उन्होंने राजनीति से दूर अपने घर में ही रहे। साल 1962 में ही उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
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