उत्तर प्रदेश भारत का अध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत का केंद्र माना जाता है। यहां आगरा के ताजमहल से लेकर लखनऊ की नवाबी नजाकत के किस्से विश्वभर में होते हैं। बीते कुछ वर्षों में राज्य अपनी समृद्ध परंपराओं और आधुनिकता को साथ जोड़कर वैश्विक पटल पर अपनी खास पहचान बनाने में सफल रहा है।
इसकी पहचान तप, ज्ञान, धर्म और कर्म की धरती की रूप में भी होती है। राज्य सबसे अधिक जिले वाला राज्य है और प्रत्येक जिले की अपनी एक विशेषता है। इस वजह से जिलों को उनके मूल नाम के अलावा उपनाम से भी जाना जाता है। इस कड़ी में यहां एक ऐसा जिला भी है, जिसे ईंटों का शहर भी कहा जाता है। कौन-सा है यह जिला, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
उत्तर प्रदेश में कुल कितने जिले हैं
उत्तर प्रदेश में वर्तमान में 75 जिले हैं। हालांकि, यहां 76वां जिला बनने का प्रस्ताव है, जिसका नाम कल्याण सिंह नगर रखा जाएगा। इस जिले के लिए सीमांकन प्रक्रिया को मंजूरी दी गई है। वहीं, ये सभी 75 जिले कुल 18 मंडलों में आते हैं और ये सभी मंडल चार संभागों में आते हैं।
प्रदेश के दिशायुक्त जिले कौन-से हैं
उत्तर प्रदेश का सबसे पूर्वी जिला बलिया है, तो सबसे पश्चिमी जिला शामली है। वहीं, सहारनपुर सबसे उत्तरी जिले के लिए जाना जाता है, तो सोनभद्र सबसे दक्षिणी जिले के रूप में पहचान रखता है।
किस जिले को कहा जाता है ईंटों का शहर
अब हम यह जान लेते हैं कि किस जिले को ईंटों का शहर भी कहा जाता है। आपको बता दें कि यूपी में गाजीपुर जिले को ईंटों का शहर भी कहा जाता है।
क्यों कहा जाता है ईंटों का शहर
गाजीपुर अपने यहां मौजूद ईंट निर्माण कलस्टर के लिए जाना जाता है। यह वाराणसी मंडल में आने वाला एक महत्त्वपूर्ण ईंट निर्माण कलस्टर है, जहां पारंपरिक ईंट भट्टे मौजूद हैं। यहां ईंटों को पकाने के लिए बुल्स ट्रैंच किल्न्स (BTK) और जिगजैग तकनीक इस्तेमाल की जाती है।
गंगा किनारे होने का है फायदा
गाजीपुर जिला गंगा किनारे बसा है, जो कि इंडो-गैंजेटिक बेल्ट में आता है। यहां की मिट्टी में बालू और चिकनाई सही मिश्रण में होती है। ऐसे में यहां इस मिट्टी से बनी ईंटे पकने के बाद चटकती नहीं हैं, बल्कि अधिक मजबूत बन जाती हैं। यहां 480 से अधिक ईंट भट्टे हैं, जिनसे 15 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है।
वहीं, गाजीपुर पूर्वांचल में प्रमुख जिला है, जिसकी कनेक्टिविटी भी बेहतर है। यहां से ईंटों की ढुलाई में भी सुगमता होती है और श्रमिक भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यही वजह है कि यहां पारंपरिक रूप से ईंटों का निर्माण किया जा रहा है।
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