भारत का नक्शा उठाकर देखें, तो भौगोलिक रूप से हमें यहां कई विविधता देखने को मिलेगी। देशभर के अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जल, जंगल और पहाड़ हैं। प्राकृतिक रूप से इनका अधिक महत्त्व है। इनसे न सिर्फ जैव विविधता को भी संरक्षण मिलता है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी इनका उतना ही महत्त्व है।
भारत में पहाड़ियों की बात करें, तो ये हमें भारत के उत्तर, उत्तर-पूर्वी, पश्चिम और दक्षिण क्षेत्र में अधिक देखने को मिलती हैं। ये पहाड़ियां अलग-अलग राज्यों में हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा पर्वत भी है, जो कि दो राज्यों की सीमा पर मौजूद है। आपने इस पर्वत का नाम जरूर सुना होगा। कौन-सा है यह पर्वत, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
किन दो राज्यों की सीमा पर है पर्वत
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि पर्वत किन दो राज्यों की सीमा पर बना हुआ है। आपको बता दें कि यह पर्वत राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है।
कौन-सा पर्वत दो राज्यों की सीमा पर है
अब सवाल है कि वह कौन-सा है पर्वत है, जो कि दो राज्यों की सीमा पर मिलता है, तो आपको बता दें यह गोवर्धन पर्वत है। यह पर्वत राजस्थान और यूपी से सीमा साझा करता है।
किस प्रकार साझा होती है सीमा
आपको बता दें कि राजस्थान का भरतपुर-धौलपुर क्षेत्र व मथुरा का क्षेत्र वह बिंदु है, जहां अरावली की अंतिम पहाड़ियां व उनके प्रभाव मौजूद हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अराववी श्रृंखला का मुख्य और ऊंचा भाग दोनों राज्यों की सीमा पर नहीं है, लेकिन इसकी अंतिम पहाड़ियां इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनमें गोवर्धन पर्वत भी आता है।
परिक्रमा का कुछ हिस्सा राजस्थान में मौजूद
हिंदू धर्म में गोवर्धन पर्वत का विशेष महत्त्व है। ऐसे में लोग मन में आस्था के साथ इस पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जो कि 21 किलोमीटर यानि कि 7 कोस की परिक्रमा है। यह पर्वत वृंदावन से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस परिक्रमा का अधिकांश हिस्सा यूपी में आता है, लेकिन एक हिस्सा राजस्थान के भरतपुर जिले से होकर गुजरता है। ऐसे में जब श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं, तो वे एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा पार करते हैं। इस पर्वत के एक तरफ राजस्थान है, तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश मौजूद है।
गोवर्धन पर्वत का महत्त्व
गोवर्धन पर्वत ब्रज क्षेत्र में आता है और हिंदू धर्म में इसका अधिक महत्त्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इसे भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना गया है। ऐसे में श्रद्धालु इसकी पूजा-अराधना व परिक्रमा करते हैं। हर साल यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जिससे यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है और स्थानीय लोगों को रोजगार को मिलता है।
पढ़ेंःदुनिया के पहाड़ों के बारे में कितनी है आपकी जानकारी, यहां परखें
Comments
All Comments (0)
Join the conversation